Thursday, September 30, 2010



???????वो कौन थी????????


बेहद काली, हिरनी जैसी,
कुछ बोलती, कुछ ढूँढती आँखें.
बीच बीच में मेरी तरफ देखती
फिर झुक कर , मुस्कुराती वो आंकें
हाँ, बुर्के के नकाब में से सिर्फ वो खुबसूरत आँखें
ही दिख पा रही थीं, 
लेकिन, उस काले पतले नकाब के अन्दर उसका बर्फीला सफ़ेद रंग साफ़ झलक रहा था.
तभी ट्रेन की धडधडाती तेज़ आवाज़ से
उसकी गोद में सोया बच्चा जाग कर रोने लगा
और वो कुछ परेशान सी खिसियाती हुई
उसे फिर सुलाने की कोशिश करने में लग गयी.
"क्या आपको भी लखनऊ जाना है?"..
मेरे सवाल पर उसने मुस्कुरा कर सर हिला दिया
"ट्रेन आधा घंटा लेट है"..मैंने बोलचाल शुरू करना चाहा..
मेरी तरफ देखकर वो फिर मुस्कुरा दी.
फिर कानो में मिश्री सी घोलने वाली आवाज़ में बोली..
"क्या आप अकेली जा रही हैं?"...
मैंने हाँ में सर हिला दिया..
फिर बातचीत का दौर चल  निकला
इस आधे घंटे में ही मेरी उस से अच्छी दोस्ती हो गयी थी,
वह खुबसूरत सा मासूम बच्चा भी अब सो चुका था.
तभी दोबारा ट्रेन आई, वही धडधडाती, चिल्लाती
डर से उसने बच्चे के कान बंद कर दिए..
फिर बेचैन सी इधर उधर किसी को ढूंडने लगी
स्टेशन में आज ज्यादा भीड़ थी, प्लात्फोर्म लोगों से खचाखच भरा हुआ था.
तभी हडबडाकर उसने टाइम पुचा
मैंने कहा 2:10 min,
उसकी खुबसूरत आँखों में आंसूं उभर आये
"आप इसे पकड़कर ट्रेन में चलिए, मैं इसके अब्बा को बुलाकर लाती हूं, अल्लाह  आपको लम्बी उम्र दे........"
कहता कहते वो दौड़ पड़ी,
मैंने विस्मय से उसकी तरफ देखना चाहा
लेकिन तब तक वो मेरी आँखों से ओझल हो चुकी थी,
मैंने अपने कदम ट्रेन की तरफ बडाये,
अभी ट्रेन में मैंने पहला कदम रखा ही था
के तभी, जोर के धमाके और चीखने की आवाजों के साथ ही ज़मीन थरथरा उठी
और फिर सन्नाटा.....
कुछ ही पलक में, लोगों के रोने चिल्लाने की आवाजों ने इस सन्नाटे को भंग किया,
तो मैंने भी अपना होश संभाला
स्टेशन की दूसरी तरफ एक ज़ोरदार बम धमाका हुआ था,
लोगों में बातें थीं एक बुर्केवाली महिला आतंकवादी का आत्मघाती हमला था
घडी में 2:15 min...............
मैं अवाक  रह गयी
थोड़ी देर पहले मौत मुझसे कुछ ही cm दूर थी
मेरे रोंगटे खड़े हो गए,
डर से मैं कांप रही थी,
फिर सवालों के चक्र ने मुझे घेर लिया,
वो कौन थी?? क्या सचमुच वो....??? क्या उसने एक माँ होने का फ़र्ज़ निभाया था???...या फिर इस आधे घंटे की दोस्ती का????....
मैं हैरान थी, वो बच्चा बड़ी, काली , खुबसूरत आँखों से मेरी तरफ देख रहा था..
स्टेशन में भगदड़ मची थी,
और मैं बेजान से हो चुके शरीर में, चलने की ताकत जुटा रही थी........
                                                                                                 

No comments:

Post a Comment