Friday, March 21, 2014

SHARMA JI KI HOLI





होली कि सुबह
जब मैं चाय पीने आँगन में आयी
तो अपनी आंखों पे एकाएक विश्वास ना कर पायी
सामनेदएखा शर्मा जी खड़े हैं
फ़ोन पे किसी से मिलने कि जिद पे अड़े हैं
मैंने पूछा शर्मा जीकया है माजरा इतनी सुबह सुबह ही कैसे लाल है आपका चेहरा?
और क्या इतने सफेद कपड़ों में ही होली खेलने जाओगे
क्या आपको लगता है कि इनमें से रंग छुड़ा पाओगे?  
शर्मा जी बोले क्या बातों भाभी जी
बात तो है  बस इतनि सि
कि होली कि सजावट है
पर रंगों  में मिलावट है
व्यह्वार में बनावट है
और प्यार में दिखावट है
जी तो था कि गर्लफ्रेंड के लिए एक अच्छा सा तोहफा ले जाऊँ
पर क्या करें मोहतरमा मेहंगाइ से घबराहट है
बस इसीलिये हमारे मन में आज कड़वाहट है
मन से याद आया कि साफ़तओ हो जायेगी काया
पर उस रंग का क्या जो मन पे मन पे चढ़ गया
सभी रंगों का  mixture था कभी,  जो आज काला पद गया
कुर्ते का मेल तो vanish ले जयेगा
पर मन कि कालिख को कौन मिटा पयेगा?
मैंने कहा शर्मा जी इतना मत सोचो वरना दिमाग पे असर पड़ जयेगा
वो बोले असर तो पड़ चुका है भभिजि
गर्लफ्रेंड को बोला होली मिलने आ, तो जवाब मिला मेरा मेकअप बिगड़ जयेगा
फिर तुम ही पच्ताओगे ये किस से प्यार किया
किस घड़ी में अपना सिर ओखल में दिया
अब बताओ भभिजि अब तो हुस्न भी छलावा  है
किसी जमाने में सच था, अब तो मेकअप का  दिखावा है  
मैंने बोला शर्मा जी क्यूँ बातों में वक्त गवांते हो?
दोस्तों के साथ होली खेलने क्यूँ नही जाते हो?
शर्मा जी ने जवाब दिया
आपको क्या लगता है कि दोस्त सुगंधित् अबीर गुलाल लायेंगे?
अरे अगर इन साफ़ सफेद कपड़ों में देख् लिया
तो सीधे कीचड़ में नेह्लायेंगे
चलो कीचड़ में महकार अपनी मिटाटी कि महक तो आएगी
वरना आजकल रंगों का क्या भरोसा पूरी खाल ही जल जायेगी
शर्मा जी कि बातें सुनकर  
इतना तो समझ आ गया
कि होली का त्यौहार उन्हें बहुत कुछ समझा गया
कश कभी ऐसी भी होली आती
जो थोड़ी समझदारी देश के नेताओ में भी भर जाती
अगर येहि समझदारी का रंग उन पे भी चढ़ जाता
तो देश हमारा भी नया इतिहास गड़ जाता.......


   

Wednesday, September 5, 2012



उजालों की तलाश में
कुछ जाने अनजाने ख्वाब पलकों में लिए 
बड़े जा रहे हैं, जलाये नजरों के दिये
घनघोर जंगल है, मौसम ख़ुश्क है,
रास्तों पे पत्थर हैं, तो बिछने की काँटों में भी होड़ है,
हरी मखमली घास अब है चुभीली, और सूखी,
खूबसूरत ठंडी हवाएं भी आज हो चली हैं रूखी.
चलते हैं फिर भी इस भयावय माहौल से,
भटके हुए राहगीर और मुसाफिरों की लाश में,
चीरकर निकलने को, इन अंधेरों की खान से,
निकल पड़े हैं, आज , फिर नए उजालों की तलाश में.






Wednesday, April 20, 2011

अमियों की सीख



बैसाख का महीना  ,
चारों तरफ हरियाली बिखरी हुई,
आम के पेड़ों में भी हरी हरी छोटी छोटी,
अमियाँ लटक रही हैं, जो हवा के झोंको के साथ..
मानो, हंसतीं हैं, झूलती हैं, खेलती हैं,
कल की रात बेहद काली, और अँधेरी थी.
घने काले बादलों ने पूर्णमासी के चाँद को भी ढक लिया था 
तभी ज़ोरों से आंधी चलने लगी,
तूफ़ान अपने साथ बारिश के जोरदार छींटें ले आये,
आंधी की आवाज़ से सारा वातावरण, डरा , सहमा सा था,
सभी पौधे, फसलें, चिड़िया, और भी न जाने क्या क्या....
और वो छोटी छोटी हरी अमियाँ,,,
उनका क्या हाल होगा???
सोच कर ही मैं सहम गयी,
अभी तो जीवन  की शुरुआत ही की थी उन्होंने,
और इतनी कच्ची उम्र में ये तूफ़ान????,,,क्या करेंगी ये???
सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी....
सुबह उठी तो देखा नीले आकाश में, सुनेहरा सूरज चमक रहा था
मैंने तेजी से बहार जाकर देखा
कुछ अमिया हवा के तेज झोंके से हार कर, टूट चुकी, थीं,
कुछों ने शायद थोड़ी हिम्मत दिखाई हो,
कुछ समय संघर्ष भी किया  हो , मगर वो भी धराशायी थीं,
हाँ...लेकिन अभी भी कुछ थीं,
जो पेड़ में लटक कर उस सुनहरी धुप का आनंद ले रही थीं,
मंद मंद हवा के साथ ठिठोली कर रही थी,
देख कर लगा, जैसे मुझसे कह रही हों                                                            
संघर्ष......  ये ही जीवन है,.....
परिस्थिति के मज़बूत तूफ़ान में यदि
खुद को संभल लिया जाए
तूफ़ान से डरकर, हार कर, घुटने टेक देने के बजाए
अगर पकड़ को मजबूत बना लिया जाये
तो फिर....जीवन की सुनहरी धुप का,
आनंद, शायद कुछ और ही मिले...
........................................................................................

कहना जितना आसान, करना उतना ही मुश्किल..........
यकीन न हो तो उन्ही अमियों से पूछ के देखो.....

Saturday, April 2, 2011

सिर्फ खेल???...



३० मार्च, भारत पाक मैच का इंतज़ार सबको बेसब्री से था,
हर कोई गा रहा था अपने अपने देश के खिलाडियों की खेल कुशाग्रता की गाथा ,
मैंने भी शुरू कर दी जश्न की तैयारी,
देखकर स्ताभ्ध मेरे पडोसी शर्मा जी तुरंत आये, जान ने को मेरी बीमारी,
बोले, मिस जोशी क्या आपकी तबियत तो ठीक है?
भारत के जीतने का अंदाजा क्या आपका एकदम सटीक है?
चोकलेट, पेस्ट्री, कोल्ड ड्रिंक, इतना सबकुछ लिया,
भारत की जीत का ऐलान क्या किसी ज्योतिषी ने पक्का किया?
मैंने मुस्कुराकर उनकी इस समस्या का समाधान किया ,
कुछ यूँ घुमा फिर कर उन्हें जवाब दिया,                                        
ये ही तो है शर्मा जी हमारी सोच में नयी तरक्की,
जीत तो आज की होनी है पक्की
मैच में खेलने वाली जब टीमें हो दो
तो जीत की आश्वस्तता क्यूँ न हो?
भारत की जीत में तो आज की शाम दिवाली की तरह सजा देंगे,
वरना हम भी कुछ कम नहीं, जब तैयारी हो पूरी, तो पाक की ही जीत का जश्न  मना लेंगे.
माना की ये भी एक बहुत पुराना किस्सा है,
लेकिन सच तो ये ही है, की पाक भी अपने ही भारत का हिस्सा है.
कितनी पीढ़ियों  से ये कहानी दोहराई  जा रही है,
मैच के नाम पे दोनों मुल्कों में दूरियां बढती नज़र आ रही हैं.
दोनों देश जल्द एक हो, मैं तो ये ही दुआ करुँगी,
आज की युवा पीढ़ी से इतनी ही इल्तेज़ा करुँगी,
भारत और पाक को एक ही नज़रिए से देखो,
खेल को युद्ध मत बनाओ खेल ही रहने दो......


Friday, February 4, 2011

तारों का सन्देश

पृथ्वी से कोसों दूर,
उस स्याह काले आकाश में,
कितने ही झिलमिलाते, जगमगाते
टिमटिमाते, चमचमाते
लाखों करोड़ों तारे
न जाने किसकी ओर इशारा करते हैं,
धरती पर बरसती हजारों खुशियों की,
या फिर इंसान के मन में भरे आक्रोश की, गुस्से की..
क्या वो रौशनी एक आग है,
जो ये तारे बरसाना चाहते हैं,
या सिर्फ हमारा मार्ग रोशन करने की चाह??
क्यों कभी ये टूटते हैं, बिखरते हैं??
या फिर इस अंधियारी रात से भी ज्यादा..
एक अन्धकार में विलीन हो जाते हैं,                                 
शायद ये बताना चाहते हैं, हमे,
दूसरों को रोशनी देने के लिए,
यदि खुद को जलाओगे                                               
तो अँधेरे से भी गहरे अन्धकार में विलुप्त हो जाओगे
ये ही दुनिया की रीती है...
और ये ही एक सत्य... 

विद्रोही तारा और चाँद का डर



दूर कहीं उस काले आसमान में,

एक बेहद चमकीला तारा है,
अँधेरे के साथ साथ ..
उसकी चमक भी बढती जाती है,
आज की रात कुछ ज्यादा शांत है, गंभीर है,
किसी तूफ़ान से पहले की शान्ति हो जैसे.
तभी एक गहरी चमक के साथ,
वो तारा तेजी से धरती की ओर बड़ा
मन में आक्रोश था या घमंड,
वो विद्रोही तारा पृथ्वी से जा टकराया
और कोटि कोटि प्रकाश कणों में बिखर गया
पूरे आकाश में एक हलचल हुई, और फिर ....शान्ति 
चाँद साक्षी है, इस पुरे वृतान्त का
मगर आँखें मूंदे खड़ा है                                                                       
शायद अपनी चाँदनी खोने से डरता है,
फिर होती है एक और हलचल,
करोड़ों चाँद और तारों की रौशनी लिए,
उदय होता है एक और तारा,
सारे तारे, और चांदनी को समेटे हुए वो डरपोक चाँद,
जो न जाने कितने ही हादसों का, 
खौफनाक मंजरों का, गवाह है
चुपचाप, आसमान के आँचल में सो जाता है
फिर से एक अँधेरी भयानक रात में,
शायद ऐसे ही एक और हादसे का गवाह बनने के लिए.............

Wednesday, January 19, 2011

बरसात,मैं और वो नन्हा पौधा

बरसात के दिन थे,
नर्सरी   से लाकर 
मैंने एक नन्हा पौधा लगाया.
उस हरे पौधे को देखकर लगा
मानो मेरी ज़िन्दगी में भी,
एक रंग जुड़ गया जैसे
मैं रोज़ उसे देखती                                                         ,
पानी और खाद से उसे सींचती 
फिर एक दिन उसमे
बेहद खुबसूरत, सुर्ख लाल
एक कली खिली,
उस कली के गहरे रंग ने
मानो मेरी जीवन को भी रंगीन कर दिया
देखते ही देखते वो
एक सुन्दर फूल में परिवर्तित  हुई
ऐसा लगा जैसे मेरा भी, जीवन परिवर्तन हो रहा था.
फिर अचानक ठण्ड पड़ गयी 
सूखी ठण्ड...........
सूरज की रौशनी जैसे खो गयी
मेरे जीवन में भी जैसे अन्धकार छा रहा था,
एक दिन खिड़की खोली 
तो सामने उस सूखे हुए फूल और मुरझाये पौधे  को देखकर,
मुझे अपना जीवन बोध हुआ..
वही खालीपन, नीरसता, वीरानी
मेरे भी तो जीवन में थी.
क्या मौसम के खुशनुमा हो जाने से,
वो मुरझाया पौधा और वो सूखा फूल खिल उठेगा???
नहीं ना????....
तो फिर मेरा जीवन???
जो बिलकुल उस पौधे की तरह था,
क्या कभी वैसा हो सकेगा जैसा मैंने सोचा था?
"उम्मीद पे दुनिया कायम है"...
लेकिन जब उम्मीद ही ना हो तो?
दुनिया की नीव तो उम्मीद के साथ ही कमज़ोर पड़ जाएगी....
शायद खुद से मेरी अपेक्षाओं  के बोझ ने,
उस सूखी ठण्ड का काम किया है..
जो मेरा जीवन (पौधा), और ख़ुशी ( फूल), मुरझा गए हैं, सूख गए हैं...
आगे क्या होगा????
शायद ठण्ड  के बाद की धुप निकलेगी............
सुनहरी, चमकदार....
और अन्धकार???...निराशा???...
फिर शायद कभी नही लौटेंगे....



Thursday, September 30, 2010



???????वो कौन थी????????


बेहद काली, हिरनी जैसी,
कुछ बोलती, कुछ ढूँढती आँखें.
बीच बीच में मेरी तरफ देखती
फिर झुक कर , मुस्कुराती वो आंकें
हाँ, बुर्के के नकाब में से सिर्फ वो खुबसूरत आँखें
ही दिख पा रही थीं, 
लेकिन, उस काले पतले नकाब के अन्दर उसका बर्फीला सफ़ेद रंग साफ़ झलक रहा था.
तभी ट्रेन की धडधडाती तेज़ आवाज़ से
उसकी गोद में सोया बच्चा जाग कर रोने लगा
और वो कुछ परेशान सी खिसियाती हुई
उसे फिर सुलाने की कोशिश करने में लग गयी.
"क्या आपको भी लखनऊ जाना है?"..
मेरे सवाल पर उसने मुस्कुरा कर सर हिला दिया
"ट्रेन आधा घंटा लेट है"..मैंने बोलचाल शुरू करना चाहा..
मेरी तरफ देखकर वो फिर मुस्कुरा दी.
फिर कानो में मिश्री सी घोलने वाली आवाज़ में बोली..
"क्या आप अकेली जा रही हैं?"...
मैंने हाँ में सर हिला दिया..
फिर बातचीत का दौर चल  निकला
इस आधे घंटे में ही मेरी उस से अच्छी दोस्ती हो गयी थी,
वह खुबसूरत सा मासूम बच्चा भी अब सो चुका था.
तभी दोबारा ट्रेन आई, वही धडधडाती, चिल्लाती
डर से उसने बच्चे के कान बंद कर दिए..
फिर बेचैन सी इधर उधर किसी को ढूंडने लगी
स्टेशन में आज ज्यादा भीड़ थी, प्लात्फोर्म लोगों से खचाखच भरा हुआ था.
तभी हडबडाकर उसने टाइम पुचा
मैंने कहा 2:10 min,
उसकी खुबसूरत आँखों में आंसूं उभर आये
"आप इसे पकड़कर ट्रेन में चलिए, मैं इसके अब्बा को बुलाकर लाती हूं, अल्लाह  आपको लम्बी उम्र दे........"
कहता कहते वो दौड़ पड़ी,
मैंने विस्मय से उसकी तरफ देखना चाहा
लेकिन तब तक वो मेरी आँखों से ओझल हो चुकी थी,
मैंने अपने कदम ट्रेन की तरफ बडाये,
अभी ट्रेन में मैंने पहला कदम रखा ही था
के तभी, जोर के धमाके और चीखने की आवाजों के साथ ही ज़मीन थरथरा उठी
और फिर सन्नाटा.....
कुछ ही पलक में, लोगों के रोने चिल्लाने की आवाजों ने इस सन्नाटे को भंग किया,
तो मैंने भी अपना होश संभाला
स्टेशन की दूसरी तरफ एक ज़ोरदार बम धमाका हुआ था,
लोगों में बातें थीं एक बुर्केवाली महिला आतंकवादी का आत्मघाती हमला था
घडी में 2:15 min...............
मैं अवाक  रह गयी
थोड़ी देर पहले मौत मुझसे कुछ ही cm दूर थी
मेरे रोंगटे खड़े हो गए,
डर से मैं कांप रही थी,
फिर सवालों के चक्र ने मुझे घेर लिया,
वो कौन थी?? क्या सचमुच वो....??? क्या उसने एक माँ होने का फ़र्ज़ निभाया था???...या फिर इस आधे घंटे की दोस्ती का????....
मैं हैरान थी, वो बच्चा बड़ी, काली , खुबसूरत आँखों से मेरी तरफ देख रहा था..
स्टेशन में भगदड़ मची थी,
और मैं बेजान से हो चुके शरीर में, चलने की ताकत जुटा रही थी........