Wednesday, January 19, 2011

बरसात,मैं और वो नन्हा पौधा

बरसात के दिन थे,
नर्सरी   से लाकर 
मैंने एक नन्हा पौधा लगाया.
उस हरे पौधे को देखकर लगा
मानो मेरी ज़िन्दगी में भी,
एक रंग जुड़ गया जैसे
मैं रोज़ उसे देखती                                                         ,
पानी और खाद से उसे सींचती 
फिर एक दिन उसमे
बेहद खुबसूरत, सुर्ख लाल
एक कली खिली,
उस कली के गहरे रंग ने
मानो मेरी जीवन को भी रंगीन कर दिया
देखते ही देखते वो
एक सुन्दर फूल में परिवर्तित  हुई
ऐसा लगा जैसे मेरा भी, जीवन परिवर्तन हो रहा था.
फिर अचानक ठण्ड पड़ गयी 
सूखी ठण्ड...........
सूरज की रौशनी जैसे खो गयी
मेरे जीवन में भी जैसे अन्धकार छा रहा था,
एक दिन खिड़की खोली 
तो सामने उस सूखे हुए फूल और मुरझाये पौधे  को देखकर,
मुझे अपना जीवन बोध हुआ..
वही खालीपन, नीरसता, वीरानी
मेरे भी तो जीवन में थी.
क्या मौसम के खुशनुमा हो जाने से,
वो मुरझाया पौधा और वो सूखा फूल खिल उठेगा???
नहीं ना????....
तो फिर मेरा जीवन???
जो बिलकुल उस पौधे की तरह था,
क्या कभी वैसा हो सकेगा जैसा मैंने सोचा था?
"उम्मीद पे दुनिया कायम है"...
लेकिन जब उम्मीद ही ना हो तो?
दुनिया की नीव तो उम्मीद के साथ ही कमज़ोर पड़ जाएगी....
शायद खुद से मेरी अपेक्षाओं  के बोझ ने,
उस सूखी ठण्ड का काम किया है..
जो मेरा जीवन (पौधा), और ख़ुशी ( फूल), मुरझा गए हैं, सूख गए हैं...
आगे क्या होगा????
शायद ठण्ड  के बाद की धुप निकलेगी............
सुनहरी, चमकदार....
और अन्धकार???...निराशा???...
फिर शायद कभी नही लौटेंगे....