पृथ्वी से कोसों दूर,
उस स्याह काले आकाश में,
कितने ही झिलमिलाते, जगमगाते
टिमटिमाते, चमचमाते
लाखों करोड़ों तारे
न जाने किसकी ओर इशारा करते हैं,
धरती पर बरसती हजारों खुशियों की,
या फिर इंसान के मन में भरे आक्रोश की, गुस्से की..
जो ये तारे बरसाना चाहते हैं,
या सिर्फ हमारा मार्ग रोशन करने की चाह??
क्यों कभी ये टूटते हैं, बिखरते हैं??
या फिर इस अंधियारी रात से भी ज्यादा..
एक अन्धकार में विलीन हो जाते हैं,
शायद ये बताना चाहते हैं, हमे,
दूसरों को रोशनी देने के लिए,
यदि खुद को जलाओगे
तो अँधेरे से भी गहरे अन्धकार में विलुप्त हो जाओगे
ये ही दुनिया की रीती है...
और ये ही एक सत्य...
सत्य का बोध कराती सुन्दर रचना!
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