Friday, February 4, 2011

विद्रोही तारा और चाँद का डर



दूर कहीं उस काले आसमान में,

एक बेहद चमकीला तारा है,
अँधेरे के साथ साथ ..
उसकी चमक भी बढती जाती है,
आज की रात कुछ ज्यादा शांत है, गंभीर है,
किसी तूफ़ान से पहले की शान्ति हो जैसे.
तभी एक गहरी चमक के साथ,
वो तारा तेजी से धरती की ओर बड़ा
मन में आक्रोश था या घमंड,
वो विद्रोही तारा पृथ्वी से जा टकराया
और कोटि कोटि प्रकाश कणों में बिखर गया
पूरे आकाश में एक हलचल हुई, और फिर ....शान्ति 
चाँद साक्षी है, इस पुरे वृतान्त का
मगर आँखें मूंदे खड़ा है                                                                       
शायद अपनी चाँदनी खोने से डरता है,
फिर होती है एक और हलचल,
करोड़ों चाँद और तारों की रौशनी लिए,
उदय होता है एक और तारा,
सारे तारे, और चांदनी को समेटे हुए वो डरपोक चाँद,
जो न जाने कितने ही हादसों का, 
खौफनाक मंजरों का, गवाह है
चुपचाप, आसमान के आँचल में सो जाता है
फिर से एक अँधेरी भयानक रात में,
शायद ऐसे ही एक और हादसे का गवाह बनने के लिए.............

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