Wednesday, April 20, 2011

अमियों की सीख



बैसाख का महीना  ,
चारों तरफ हरियाली बिखरी हुई,
आम के पेड़ों में भी हरी हरी छोटी छोटी,
अमियाँ लटक रही हैं, जो हवा के झोंको के साथ..
मानो, हंसतीं हैं, झूलती हैं, खेलती हैं,
कल की रात बेहद काली, और अँधेरी थी.
घने काले बादलों ने पूर्णमासी के चाँद को भी ढक लिया था 
तभी ज़ोरों से आंधी चलने लगी,
तूफ़ान अपने साथ बारिश के जोरदार छींटें ले आये,
आंधी की आवाज़ से सारा वातावरण, डरा , सहमा सा था,
सभी पौधे, फसलें, चिड़िया, और भी न जाने क्या क्या....
और वो छोटी छोटी हरी अमियाँ,,,
उनका क्या हाल होगा???
सोच कर ही मैं सहम गयी,
अभी तो जीवन  की शुरुआत ही की थी उन्होंने,
और इतनी कच्ची उम्र में ये तूफ़ान????,,,क्या करेंगी ये???
सोचते सोचते न जाने कब मेरी आँख लग गयी....
सुबह उठी तो देखा नीले आकाश में, सुनेहरा सूरज चमक रहा था
मैंने तेजी से बहार जाकर देखा
कुछ अमिया हवा के तेज झोंके से हार कर, टूट चुकी, थीं,
कुछों ने शायद थोड़ी हिम्मत दिखाई हो,
कुछ समय संघर्ष भी किया  हो , मगर वो भी धराशायी थीं,
हाँ...लेकिन अभी भी कुछ थीं,
जो पेड़ में लटक कर उस सुनहरी धुप का आनंद ले रही थीं,
मंद मंद हवा के साथ ठिठोली कर रही थी,
देख कर लगा, जैसे मुझसे कह रही हों                                                            
संघर्ष......  ये ही जीवन है,.....
परिस्थिति के मज़बूत तूफ़ान में यदि
खुद को संभल लिया जाए
तूफ़ान से डरकर, हार कर, घुटने टेक देने के बजाए
अगर पकड़ को मजबूत बना लिया जाये
तो फिर....जीवन की सुनहरी धुप का,
आनंद, शायद कुछ और ही मिले...
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कहना जितना आसान, करना उतना ही मुश्किल..........
यकीन न हो तो उन्ही अमियों से पूछ के देखो.....

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